बकरियो को कितने प्रकार से पाल सकते

भारत देश मे बकरी को गरीब को गाय कहा जाता है, इसका पालन करना सबसे उचित ओर कम खर्चीला माना जाता है, इस कारण बहुत से लोग इस विभिन्न प्रकार से पालते है।
इसके रख रखाव पर भी अन्य उपयोगी पशु जैसे गाय और भेस की तुलना में बहुत कम ख़र्चा आता है।
साथ ही इसको पालने में जोकिम भी कम है।
बकरी मास के उपयोग में कोई धार्मिक प्रतिबंध नही है, इसके मांस की सदैव माग बढ़ती ही रही है।

परम्परा गत बकरी पालन के इन विकल्पों में से पहले विकल्प में से बकरियो को बीना चराये हुए घर अथवा फार्म पर सघन खिला कर भी पाला जा सकता है।।

पालन है हिसाब से  बकरी को 3 प्रकार से पाला जा सकता है।

1.सघन पद्धति

2.अर्द्धसघन पद्धति 

1.सघन पद्धति
ये पद्धति उन छेत्र की लिए उपयुक्त है जहा बकरिया के चराने के लिए पर्याप्त चारा उपलब्ध नही है।
इस पद्धति में बकरियो को फार्म अथवा घर पे रख कर घर पे ही दान चारा दिया जरा है।
इस पद्धति में पशुवों के रख रखाव ओर घूमने फिरने की पर्याप्त सुविधा न होने के कारण उनके खुरो में घिसावट काम होती है। जिसके कारण बकरियो के खुर बढ़ते रहते है।इस पद्धति को पालने से प्रमुख लाभ ये है कि फार्म की अछि रख रखाव ओर साफसफाई ओर पशुवों की अचछी देख भाल होने के कारण पसुवो में बीमारी कम होती है।

2.अर्द्धसघन पद्धति
ये पद्धति उन छेत्र के लिए उपयुक्त है जहाँ चारागाह की सुविधा केवल सीमित छेत्र के साथ उपलब्ध हो और साथ साथ ही चारे की उपलब्धता भी आवस्यकता से कम हो
ऐसी इस्थिति में बकरी को चराने के लिए सीमित समय के लिए बाहर भेज जाता है, ओर घर पे भी बकरियो को चारा दिया जाता है। और आवस्यकता अनुसार दाना ओर सूखा भी घर पे उपलभ्ध किया जाता है

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