ग्वार की खेती:
कीट एवं रोग नियंत्रण
ग्वार में लगने वाले कीटों में एफिड़ (माहू), पत्ती छेदक, सफेद मक्खी, लीफ हापर या जैसिड़ व केटरपिलर प्रमुख हैं। भरपूर उत्पादन हेतु इन कीटों को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है। एफिड, जैसिड़ व केटरपिलर की रोकथाम हेतु एंडोसल्फान 4 प्रतिशत पाउडर का 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए या इंडोसल्फान 35 ईसी की 0.07 प्रतिशत की दर से फसल पर 10 दिनों के अंतराल पर दो छिड़काव उपयोगी पाए गए हैं। सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु Flonicamid 50 WG छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा जहां पानी की सुविधा हो, मिथाइल पैराथियान 50 प्रतिशत 750 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों की मृदाओं में भूमिगत कीटों विशेषकर दीमक का अधिक प्रकोप होता है। इसकी रोकथाम हेतु क्लोरपायरीफास या एंडोसल्फान 4 प्रतिशत या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत पूर्ण 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई पूर्व मिट्टी में अच्छी तरह से मिला दें।
ग्वार की फसल के प्रमुख रोगों में जीवाणुज अंगमारी, ऑल्टरनेरिया पर्ण अंगमारी, जड़ गलन, चूर्णिल आसिता व ऐन्थ्रेक्नोज है। इसके लिए आप Carbendazim 12 % + Mancozeb 63 % WP) यानी upl कंपनी का साफ पावडर का स्प्रे कर सकते हो।
रबी की कटाई शुरू होने वाली है। खेत खाली हो जाएंगे। या फिर जो खेत अभी खाली है, उसका किसान सदुपयोग कर खीरा फसल लगाकर लाभ कमा सकते हैं। खीरा लगाने का सर्वश्रेष्ठ समय फरवरी-मार्च है। यदि किसान फसल लगाते हैं 35 से 40 दिन में फसल पककर तैयार हो जाएगी।
एक हेक्टेयर में ढाई से तीन किलोग्राम बीज ही लगेगा। बुवाई का समय स्थान विशेष की जलवायु पर निर्भर करता है। वैसे गर्मी वाली फसल के लिए बीज की बुवाई फरवरी के बीच और मार्च के पहले सप्ताह तक में करें। एक हेक्टेयर खेत के लिए 2.5 से 3.0 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है।
उन्नत किस्में पूसा संयोग, पाइनसेट, खीरा-90, टेस्टी, मालव-243, गरिमा सुपर, ग्रीन लांग, सदोना, एनसीएच-2, रागिनी, संगिनी, मंदाकिनी, मनाली, यएस-6125, यूएस-6125, यूएस-249 इत्यादि।
बोवने की विधि - खीरे की बुवाई नाली में भी की जा सकती है।या फिर आप बेड बना के ओर ड्रिप से फसल की बुवाई कर सकते हो।इनके किनारे पर खीरे के बीज की बुवाई की जाती है। दो बेड के बीच की दूरी 3.5 फिट रखें। इसके साथ ही एक बीज से दूसरे बीज की दूरी 3.5 फिट रखें। ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए बीज की बुवाई करने से पहले 12 घंटे तक पानी में भिगोकर रखे।
सिंचाई - फसल में फूल आने की अवस्था में हर पांच दिन के अंतराल पर सिंचाई करेें। जिन क्षेत्रों में सिंचाई जल की कमी हो वहां पर टपक सिंचाई लगाए। इससे खेत में पर्याप्त नमी बनी रहती है, साथ ही सिंचाई जल की आवश्यकता भी कम होती है।
एक हेक्टेयर में ढाई से तीन किलोग्राम बीज ही लगेगा। बुवाई का समय स्थान विशेष की जलवायु पर निर्भर करता है। वैसे गर्मी वाली फसल के लिए बीज की बुवाई फरवरी के बीच और मार्च के पहले सप्ताह तक में करें। एक हेक्टेयर खेत के लिए 2.5 से 3.0 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है।
किसानों के बीच हाइब्रिड लौकी की सम्राट, अर्का बहार, अर्का गंगा, अर्का नूतन, पूसा संतुष्टि, पूसा संदेश जैसी किस्में क्वालिटी और अधिक पैदावार के मामले में काफी लोकप्रिय
बोवने की विधि - लोकी की खेती की बुवाई नाली में भी की जा सकती है।या फिर आप बेड बना के ओर ड्रिप से फसल की बुवाई कर सकते हो।इनके किनारे पर खीरे के बीज की बुवाई की जाती है। दो बेड के बीच की दूरी 3.5 फिट रखें। इसके साथ ही एक बीज से दूसरे बीज की दूरी 3.5 फिट रखें। ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए बीज की बुवाई करने से पहले 12 घंटे तक पानी में भिगोकर रखे।
साथी ही आप खुटे बॉस लगा कर भी इसकी खेती करे इससे ज्यादा उत्पादन मिलेगा
सिंचाई - फसल में फूल आने की अवस्था में हर पांच दिन के अंतराल पर सिंचाई करेें। जिन क्षेत्रों में सिंचाई जल की कमी हो वहां पर टपक सिंचाई लगाए। इससे खेत में पर्याप्त नमी बनी रहती है, साथ ही सिंचाई जल की आवश्यकता भी कम होती है।
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