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मार्च महीने में कौन सी फसल लगाए?

मार्च माह में बोई जाने वाली फसलें:- 

मार्च माह में किसानों को ग्वार, खीरा-ककड़ी, लौकी, तुरई, कद्दू, खरबूजा, तरबूज, पालक, भिंडी, अरबी, बैगन,हरा धनिया,आदि फसल लगा के किसान अच्छा खासा मुनाफा कमा सकता है।

ग्वार की खेती: 

गवार की फसल में समय कम और पैसा अच्छा मिलता है, गर्मी के मोसम में इसकी सब्जी को काफी पसंद किया जाता है, साथ ही गर्मी में इस फसल को कम पानी लगता हे,
कम रोग लगने कारण इसके उत्पादन में कम खर्च लगता हे।
इस कारण मार्च महीने में इस फसल को लगाया जाता है

कीट एवं रोग नियंत्रण

 ग्वार में लगने वाले कीटों में एफिड़ (माहू), पत्ती छेदक, सफेद मक्खी, लीफ हापर या जैसिड़ व केटरपिलर प्रमुख हैं। भरपूर उत्पादन हेतु इन कीटों को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है। एफिड, जैसिड़ व केटरपिलर की रोकथाम हेतु एंडोसल्फान 4 प्रतिशत पाउडर का 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए या इंडोसल्फान 35 ईसी की 0.07 प्रतिशत की दर से फसल पर 10 दिनों के अंतराल पर दो छिड़काव उपयोगी पाए गए हैं। सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु  Flonicamid 50 WG छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा जहां पानी की सुविधा हो, मिथाइल पैराथियान 50 प्रतिशत 750 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों की मृदाओं में भूमिगत कीटों विशेषकर दीमक का अधिक प्रकोप होता है। इसकी रोकथाम हेतु क्लोरपायरीफास या एंडोसल्फान 4 प्रतिशत या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत पूर्ण 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई पूर्व मिट्टी में अच्छी तरह से मिला दें।

ग्वार की फसल के प्रमुख रोगों में जीवाणुज अंगमारी, ऑल्टरनेरिया पर्ण अंगमारी, जड़ गलन, चूर्णिल आसिता व ऐन्थ्रेक्नोज है। इसके लिए आप Carbendazim 12 % + Mancozeb 63 % WP) यानी upl कंपनी का साफ पावडर का स्प्रे कर सकते हो।

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खीरा ककड़ी की खेती 

रबी की कटाई शुरू होने वाली है। खेत खाली हो जाएंगे। या फिर जो खेत अभी खाली है, उसका किसान सदुपयोग कर खीरा फसल लगाकर लाभ कमा सकते हैं। खीरा लगाने का सर्वश्रेष्ठ समय फरवरी-मार्च है। यदि किसान फसल लगाते हैं 35 से 40 दिन में फसल पककर तैयार हो जाएगी।

एक हेक्टेयर में ढाई से तीन किलोग्राम बीज ही लगेगा। बुवाई का समय स्थान विशेष की जलवायु पर निर्भर करता है। वैसे गर्मी वाली फसल के लिए बीज की बुवाई फरवरी के बीच और मार्च के पहले सप्ताह तक में करें। एक हेक्टेयर खेत के लिए 2.5 से 3.0 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है। 

उन्नत किस्में पूसा संयोग, पाइनसेट, खीरा-90, टेस्टी, मालव-243, गरिमा सुपर, ग्रीन लांग, सदोना, एनसीएच-2, रागिनी, संगिनी, मंदाकिनी, मनाली, यएस-6125, यूएस-6125, यूएस-249 इत्यादि।

बोवने की विधि - खीरे की बुवाई नाली में भी की जा सकती है।या फिर आप बेड बना के ओर  ड्रिप से फसल की बुवाई कर सकते हो।इनके किनारे पर खीरे के बीज की बुवाई की जाती है। दो बेड के बीच की दूरी 3.5 फिट रखें। इसके साथ ही एक बीज से दूसरे बीज की दूरी 3.5 फिट रखें। ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए बीज की बुवाई करने से पहले 12 घंटे तक पानी में भिगोकर रखे। 

सिंचाई - फसल में फूल आने की अवस्था में हर पांच दिन के अंतराल पर सिंचाई करेें। जिन क्षेत्रों में सिंचाई जल की कमी हो वहां पर टपक सिंचाई लगाए। इससे खेत में पर्याप्त नमी बनी रहती है, साथ ही सिंचाई जल की आवश्यकता भी कम होती है।
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लोकी की खेती
रबी की कटाई शुरू होने वाली है। खेत खाली हो जाएंगे। या फिर जो खेत अभी खाली है, उसका किसान सदुपयोग कर लोकी फसल लगाकर लाभ कमा सकते हैं। लोकी लगाने का सर्वश्रेष्ठ समय फरवरी-मार्च है। यदि किसान फसल लगाते हैं 35 से 40 दिन में फसल पककर तैयार हो जाएगी।

एक हेक्टेयर में ढाई से तीन किलोग्राम बीज ही लगेगा। बुवाई का समय स्थान विशेष की जलवायु पर निर्भर करता है। वैसे गर्मी वाली फसल के लिए बीज की बुवाई फरवरी के बीच और मार्च के पहले सप्ताह तक में करें। एक हेक्टेयर खेत के लिए 2.5 से 3.0 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है। 

किसानों के बीच हाइब्रिड लौकी की सम्राट, अर्का बहार, अर्का गंगा, अर्का नूतन, पूसा संतुष्टि, पूसा संदेश जैसी किस्में क्वालिटी और अधिक पैदावार के मामले में काफी लोकप्रिय

बोवने की विधि - लोकी की खेती की बुवाई नाली में भी की जा सकती है।या फिर आप बेड बना के ओर  ड्रिप से फसल की बुवाई कर सकते हो।इनके किनारे पर खीरे के बीज की बुवाई की जाती है। दो बेड के बीच की दूरी 3.5 फिट रखें। इसके साथ ही एक बीज से दूसरे बीज की दूरी 3.5 फिट रखें। ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए बीज की बुवाई करने से पहले 12 घंटे तक पानी में भिगोकर रखे। 
साथी ही आप खुटे बॉस लगा कर भी इसकी खेती करे इससे ज्यादा उत्पादन मिलेगा

सिंचाई - फसल में फूल आने की अवस्था में हर पांच दिन के अंतराल पर सिंचाई करेें। जिन क्षेत्रों में सिंचाई जल की कमी हो वहां पर टपक सिंचाई लगाए। इससे खेत में पर्याप्त नमी बनी रहती है, साथ ही सिंचाई जल की आवश्यकता भी कम होती है।
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तोरई की खेती:

 गर्मी और बारिश के मौसम में बड़े पैमाने पर बेलदार और कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती की जाती है. बात करें तोरई की बाजारों में इसकी मांग रहती है. कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा और विटामिन-ए के गुणों से भरपूर तोरई एक नकदी फसल भी है, जिसकी मार्च अप्रैल ओर जून से जुलाई के बीच की जाती है. तोरई की फसल 70-80 दिनों में फल देना शुरु कर देती है. इस फसल में कम सिंचाई, निराई-गुड़ाई और पोषण प्रबंधन का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. किसान भाई चाहें तो तोरई की परंपरागत खेती न करके पॉलीहाउस में इसकी संरक्षित फसल उगा सकते हैं. 


तोरई की उन्नत किस्में
अच्छी किस्म के बीजों से खेती करने पर पैदावार भी अच्छी होती है. पूसा संस्थान ने तोरई की उन्नत और अधिक पैदावार देने वाली कई किस्में इजाद की हैं, जिनमें पूसा चिकनी, पूसा स्नेहा, पूसा सुप्रिया, काशी दिव्या, कल्याणपुर चिकनी, फुले प्रजतका, घिया तोरई, पूसा नसदान, सरपुतिया, कोयम्बू- 2 को काफी पसंद किया जाता है. 

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कद्दू (पेठा) की खेती:


कद्दू की फसल को कम समय में तैयार होने वाली सब्जी के रूप में किया जाता है |  इसकी सब्जी के उपयोग से कई तरह के स्वास्थ लाभ भी मिलते है | मटर की तरह कद्दू भी द्विबीजीय पौधों की श्रेणी में आता है | कद्दू का इस्तेमाल हरे फलो से लेकर पके हुए फलों के साथ बीजो तक को कई तरह की खाने की चीजों में किया जाता है | खाने के अलावा कद्दू का उपयोग मिठाईयों को बनाने में भी किया जाता है |

कद्दू के बीजो की रोपाई को किसान अपने हाथ से ही करते है | एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 3 से 4 किलो बीजो की आवश्यकता होती है | बीजो को खेत में लगाने से पहले उन्हें थीरम या बाविस्टीन की उचित मात्रा का घोल बना कर उपचारित कर लेना चाहिए | इसके बाद इन बीजो की खेत में तैयार की गई धोरेनुमा क्यारियों में रोपाई कर दे | तैयार की गई क्यारियों के बीच में तक़रीबन 4 से 5 मीटर की दूरी होनी चाहिए, वही रोपाई किये गए बीजो के मध्य तक़रीबन एक से डेढ़ फ़ीट की दूरी रखे | इससे पौधों के विकसित होने में आसानी होगी

कद्दू एक ऐसी सब्जी है जिसे फल और सब्जी दोनों तरीके से इस्तेमाल किया जाता है. इसके जायके कारण इससे व्यंजनों से लेकर कई मिठाईयां भी बनाई जाती है. भारतीय किसानों के बीच भी कद्दू बहुत फेमस है, क्योंकि यह फसल बहुत जल्दी तैयार हो जाती है और इसे कच्चा और पका दोनों तरीके से प्रयोग किया जाता है

पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में किसान इसकी खेती बड़े पैमाने पर करते हैं.

काशी हरित

हरे रंग और चपटे गोला आकार वाली यह प्रजाति बुवाई के 50 से 60 दिनों के बीच में पक कर तैयार हो जाती है. इस किस्म का एक ही फसल करीब 3.5 किलोग्राम का होता है और काशी हरित के एक ही पौधे से चार से पांच फल मिल जाते हैं. प्रति हेक्टेयर खेत में इसकी फसल लगाकर करीब 400 क्विंटल तक उत्पादन ले सकते हैं

पूसा विश्वास

देश के उत्तरी राज्यों में उगाई जाने वाली कद्दू की पूसा विश्वास किस्म प्रति हेक्टेयर खेत से 400 क्विंटल तक उत्पादन देती है. इसके फलों का रंग हरा होता है, जिन पर सफेद रंग के धब्बे होते हैं. पूसा विश्वास के एक ही फल का वजन करीब  5 किलोग्राम होता है, जो बुवाई के 120 दिनों के अंदर तुड़ाई के लिये तैयार हो जाता है. प्रत्येक प्रति हेक्टेयर जमीन पर इसे उगाकर 400 क्विंटल का क्वालिटी उत्पादन ले सकते हैं

नरेंद्र आभूषण 

इस किस्म के कद्दू का मध्यम गोल आकार होता है, जिसपर गहरे हरे रंग के दाग होते हैं. इसका वजन 5 से 6 kg होता है,प्रति हेक्टेयर इसका उत्पादन 450 क्विंटल होता है।


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