खेती घाटे का सौदा क्यों हो रही है


आज भी किसानों को सरकारी बैंकों से मुश्किल से कर्ज मिलता है। मजबूरन उन्हें स्थानीय महाजन से ऋण उठाना पड़ता है। इस कर्जे की दर काफी ऊंची होती है और एक बार महाजन के चंगुल में फंस जाने पर छोटे किसानों के लिए उससे निजात पाना लगभग असंभव हो जाता है। भूमि सुधार, बैंकों से सस्ते कर्जे तथा मार्किट से बिचौलियों को खत्म किये बिना करोड़ों किसानों को खुशहाल बनाना असंभव है।
   
       इसकी वजह कृषि में इस्तेमाल होने वाले डीजल, खाद, उर्वरक और कीटनाशकों की कीमतों में बढ़ोतरी, ओर साथ ही बढ़ती मंहगाई, धान और सब्जी भाजी का उचित मूल्य ना मिल पाना, अनिश्चित मौसम, वातावरण का बदलना ,
 ज्यादा मात्रा में रासायनिक उर्वरक का खेती में अपयोग करने से खेती का बंजर बनना भी एक कारण हे,
 
बढ़ती मंहगाई का एक उदाहरण ये भी हे,
हम इसको एक एकड़ हे हिसाब से समझते हे

 एक एकड़ में अगर आप गेहूं की खेत करते है, तो सबसे पहले खेत की जुताई करी जाती है,
1.जुताई।        2 घंटा 2   | 900 × 2 =1800
2. बखर जुताई 1.5 घंटा.  | 900×1.5=1350
3.बुवाई  2 घंटा.              |900×2.   = 1800
4. बीज 50kg.               |50×20.    =1000
5. खाद 1 बोरी DAP.       1400.       =1400
6. खाद 2 बोरी यूरिया.       300×2.    = 600
7. दवाई स्प्रे.                    500.         = 500
8. कटाई मजदूरी             15×200.    = 3000
9. गेहूं निकालना               90kg.       = 1800
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                                     Total         = 13250
 अब बात करते हैं, उत्पादन की 
एक एकड़ में 12 से 13 कुंटल गेहूं निकलता हे, कुछ जगह में ज्यादा भी निकल सकता है,
12 से 13 क्विंटल गेहूं की कीमत 
                                            13 × 2000 = 26000

लागत को उत्पादन से घटाने पर किसान को 
                 26000-13250 = 12750  
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 इन अकड़ो को देखते हुए आप देख सकते हो को किसान की आमदनी दिनों दिन कम होती जा रही है,
एक एकड़ में किसान को 12000 रुपए मिल रहे ही वो भी 6 महीने की कमाई 
इस कारण दिनों दिन किसान कर्ज में जाते जा रहा है, 

देश के शेष राज्यों के किसानों की दुर्दशा का अनुमान सहज लगाया जा सकता है। लुधियाना विश्वविद्यालय के  शोध के अनुसार आज पंजाब के 34 प्रतिशत छोटे किसान कंगाल की रेखा के नीचे  हैं। जोत के घटते आकार, खेती की लागत में वृद्धि और बढ़ते कर्जे के बोझ ने किसानों की कमर तोड़ दी है। राज्य के किसानों की प्रति टन चावल उत्पादन पर आमदनी सन् 1995 में जहां 77 रुपए थी वहीं 2001 में यह घटकर सात रुपये रह गई। इस दौरान गेहूं की आमदनी भी 67 रुपये से कम होकर 34 रुपए पर आ गई। वर्ष 2004-05 से वर्ष 2013-14 के बीच सरकार ने गेहूं का खरीद मूल्य 640 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1400 रुपये कर दिया। इस दौरान कृषि क्षेत्र में औसत मुद्रास्फीति दर 9.84 फीसदी रही, जिस कारण खरीद मूल्य वृद्धि के बावजूद किसानों को कोई असल लाभ नहीं मिल पाया। पानी, खाद, बीज, मजदूरी और कृषि उपकरणों के मूल्य में आई तेजी के कारण खेती घाटे का सौदा बन गई। कुछ समय पहले तक राज्य के किसानों पर 31,000 करोड़ रुपये का कर्जा चढ़ चुका था। आज वहां हर एकड़ जमीन पर औसत 41576 रुपये का कर्जा है, जिसे चुकाने में किसान नाकाम हैं। इसीलिए आत्महत्याओं का सिलसिला तेज होता जा रहा है। पंजाब में हरित क्रान्ति की शुरुआत सन् 1968 में हुई और शीघ्र ही उन्नत बीज व फर्टिलाइजर का इस्तेमाल कर राज्य के किसानों ने पैदावार 
सरकार ने खाद्यान्न में वायदा कारोबार की छूट देकर बिचौलियों की एक बड़ी जमात खड़ी कर दी है जो सारा मुनाफा हड़प रही है। हाल ही में प्याज और सब्जियों की कीमत जब आसमान छू रही थी, तब भी किसानों को मुश्किल से लागत मूल्य मिल रहा था। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार आज हर आधे घंटे में एक किसान आत्महत्या कर रहा है। 

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