watermelon Farming : कम समय और कम लागत से लाखो का मुनाफा | तरबूज की खेती कैसे करे?

तरबूज खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा और मध्यप्रदेस, महाराष्ट्र,बिहार आदि राज्यों में की जाती है. अन्य फलों के फसलों के मुकाबले इस फल में कम समय लगता है, साथी ही बात करे खाद तो आज कल हाइब्रिड बीज आने के कारण ओर अधिक उपज प्राप्त करने के कारण खाद के रूप में किसान वाटर सॉल्युबल खाद यानी NPK का प्रयोग करते हे,

तरबूज की खेती अगर कर रहे हो तो आप के पास पर्याप्त मात्रा में पानी की उपलब्धता होना जरूरी हे।

Watermelon farming profit:  भारत में गर्मियों के मौसम की शुरुआत में किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर तरबूज की बिक्री होती है गर्मी में  बाजार में तरबूज के फल की बेहद मांग रहती हैं. ऐसे में किसान इसकी खेती कर अच्छा खासा मुनाफा कमा सकता है.

बता दें कि ज्यादातर लोग गर्मियों में खुद को डिहाइड्रेशन से बचाने के तरबूज के फल को भरपूर सेवन करते हे, ऐसा होने पर इस फल माग बाजार में बहुत बड जाती है,

तरबजू के लिए मिट्टी कैसी होना चाहिए

पीएच निर्धारित करने के लिए अपनी मिट्टी का परीक्षण करवाएं। खरबूजे ओर तरबूज 6.0 और 6.5 के बीच पीएच के साथ अच्छी तरह से सूखा, रेतीली दोमट मिट्टी पर सबसे अच्छे होते हैं। 6.0 से कम पीएच वाली मिट्टी पीले पत्ते वाले पौधों का उत्पादन करेगी जो कुछ या कोई फल नहीं देते हैं। आप वसंत या पतझड़ में अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद या खाद डालकर अपनी मिट्टी में सुधार कर सकते हैं।

खेती की तैयारी कैसे करे ।

सबसे पहले खेत को अच्छी तरह से पलटी पलाव करे उसके बाद खेत को रोटावेटर से अच्छी तरह से जुताई कर दे,

अब अगर आप ड्रिप इरिगेशन से कर खेती करते हो तो आप को बेड बनना पड़ेगा,

बेड से बेड की दूरी 4.5 फिट रखे 

उसके बाद उस बेड में बेसल डोज खाद में एक एकड़ में 1बोरी DAP ,1बोरी सुपर ,ओर एक बोरी पोटाश मिला दे 

साथी ही 5kg  माइक्रोन्यूट्रिएंट्स खाद सूक्ष्म पोषक तत्व वाला का मिला के बेड के ऊपर डाल दे।

उसके बाद अगर आप मलचींग पेपर बिछाना चाहते हो तो ओर भी अच्छा होता है, मलचिंग पेपर से उत्पादन में अच्छी वृद्धि होती है,

मल्चिंग पेपर में होल करके आप पहले दिन अच्छी से 5 से 6 घंटा पानी से बेड की सिंचाई कर दे।

एक या दो दी तक बेड को गीला कर के छोड़ दे, इससे बेड के अंदर की मिट्टी में जितनी भी गर्मी होगी वो निकल जायेगी,

2दिन के बाद तरबूज के बीज का रोपण कर दे,

साथ ही अगर आप के खेत को फंगस से बचाना हो तो आप आर्गेनिक फंगी साइड दवाई यानी ट्राइकोडर्मा सुडोमोनास ड्रिप के माध्यम से 1लीटर प्रति एकड़ में 200लीटर पानी के साथ मिला के डाल दे।

दें कि इसकी खेती अनुपजाऊ या बंजर भूमि में भी की जा सकती है। 

तरबूज की खेती के लिए उन्नत किस्में (Watermelon Farming)

तरबूज की कई उन्नत किस्में होती है जो कम समय में तैयार हो जाती है और उत्पादन भी बेहतर देती हैं। इन किस्मों में प्रमुख किस्मेें इस प्र्रकार से हैं

       • सागर किग 

        • सुगर बेबी

  • दुर्गापुर केसर

  • मैक्स

  • मेलोडी 

  • सागर किंग प्लस

  • पूसा वेदना

  • सौम्या

  • डब्लू 19

  •  नाॅन यू सीड्स की विशाला



सावधानियां

तरबूज की खेती में शुरुआती एक महीना नाजुक

तरबूज "कुकुरबिटेसी" परिवार की फसल है। तरबूज की तरह ही कद्दूवर्गीय कुल की सभी फसलों (कद्दू, तरबूज, लौकी, तोरई, खबहा, खरबूज आदि)  में शुरुआती एक महीना बहुत नाजुक होता है। क्योंकि इनमें तना गलक समेत कई रोग लग जाते हैं और कीट हमला करते हैं। जिसमें देखते हुई देखते पौधे सूख जाते हैं। ऐसे में जरूरी है कि शुरुआती दिनों में किसान ज्यादा सावधानी बरतें।

 "तरबूज समेत कद्दूवर्गीय सभी फसलों को रोग बचाने के लिए पानी की उचित मात्रा जरूरी है। इसलिए पौधे नाली में न लगाकर मेड़ (बेड) पर लगाएं। ताकि पानी सिर्फ जड़ों को मिलें। अगर तना गलक रोग लग गया है तो मैंकोजेब और कार्बेन्डाज़िम की 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर जड़ों के पास ड्रिंचिंग करें। 

रोगों से बचाव के लिए 

कृषि वैज्ञानिक किसानों को सलाह देते हैं कि रासायनिक दवाओं, प्राकृतिक और यांत्रिक सभी तरह उपायों का प्रयोग करें।  

"तरबूज समेत सभी कद्दू वर्गीय फसलों के शुरुआती दिनों में तीन समस्याएं आती हैं। सबसे पहले तना गलन (Damping off Disease) का अटैक होता है। ये फफूंद से होने वाला रोग है, जिसमें जड़े पतली होकर पौधे सूख जाते हैं। दूसरी समस्या होती है व्हाइट ग्रब (सफेद गिडार) या दीमक की होती है। तीसरी समस्या तब होती है जब तरबूज आदि के पौधों में इसके बाद जब तरबूज में 2 से 5 पत्तियां तक हो जाती हैं तो नर्म कोमल पत्तियों पर रस चूसने वाले छोटे और महीन कीट हमला करते हैं। इसमें थ्रिप्स, एफिड (चेपा या माहू) और जैसिड (लीफ हॉपर प्रमुख हैं।"

ओर जब पोधा 2 से 4 पत्ती का हो जाता है तो उसमे लीफ माइनर वाला कीड़ा लग जाता है, 

तरबूज में जड़ से संबंधित रोग और उपचार

वो कहते हैं, "ज्यादातर किसान ऊपर पत्तियां देखते रहते हैं, लेकिन जड़ की तरफ ध्यान नहीं दे पाते। जबकि सबसे ज्यादा खतरा वहीं रहता है। ऐसे में अगर तना (जड़) गलन रोग लगा है तो उसके प्रबंधन के लिए जैविक विधियों में ट्राइकोडर्मा और स्यूडोमोनास का घोल 5-5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर पौधों की जड़ों के पास डालें। लेकिन उसमें थोड़ा गुड़ का घोल जरुर मिला लें। गुड़ से ये जैविक बैक्टीरिया जल्दी बढ़ते हैं।"

वो आगे कहते हैं अगर इससे समधान नहीं होता है तो रासायनिक कीटनाशकों में कार्बेन्डाज़िम (Carbendazim) थिरम (Thiram) 2 ग्राम प्रति लीटर का उपयोग करें।"

तरबूज की खेती ज्यादातर बलुई मिट्टी, बलुई दोमट और दोमट मिट्टी में होती है। जिसमे कई बार जड़ में दीमक या व्हाइट ग्रब (सफेद गिडार) जैसे कीट का प्रकोप हो सकता है। डॉ श्रीवास्तव ऐसा होने पर जैविक कीटनाशक में बेबेरिया और मेटाराइडिमय का 5-5 मिलीलीटर का मिश्रण प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव की सलाह देते हैं, इसमें भी गुड़ का थोड़ा घोल मिलाने से फायदे होता है। जबकि रासायनिक पेस्टीसाइड में वो ईमिडा क्लोपिड और फिप्रोनिल 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव की सलाह देते हैं। ओर लीफ माइनर के लिए दमन कंपनी की बायो 303 दवाई का प्रयोग करे।


तरबूज के पौधे पर रस चूसक कीड़ों का हमला और बचाव

तरबूज-खरबूज, कद्दू लौकी जैसी फसलों में रस चूसक कीट बड़ी समस्या बनते हैं। जब पौधे में 2-5 पत्तियां होती हैं, रस चूसक कीट हमला करते हैं, इनमें थ्रिप्स, एफिड (चेपा या माहू), लीफ हॉपर (जैसिड) प्रमुख हैं। माहू ज्यादातर सरसों में लगता है, लेकिन अगर पास में उसका खेत है तो प्रकोप हो सकता है। पादप रक्षा वैज्ञानिक डॉ श्रीवास्तव रस चूसक से बचने के लिए किसानों को अपनी फसल में कई घरेलू कीटनाशक और नियंत्रक अपनाने की सलाह देते हैं। "रस चूसक कीटों से पौधों को बचाने सबसे आसान तरीका है कि येलो स्टिकी ट्रैप लगाए जाएं। पौधों पर कंडी (उपलों) की राख का छिड़काव करें। नीम के तेल में गोमूत्र मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं। पौधों का स्वाद अटपटा होने पर वो कीट उन पर हमला नहीं करेंगे।" डॉ. श्रीवास्तव कहते हैं। इसके साथ ही जैविक उत्पादन के लिए किसान क्रॉप नेट कवर भी लगा सकते हैं। इससे कीट अंदर प्रवेश नहीं कर पाएंगे और पौधे सुरक्षित रहेंगे।

लाल गुजिया का प्रकोप

तरबूज के पौधे बड़े होने पर लाल गुजिया का भी प्रकोप होता है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक किसान घर पर नीम, धतूरा, लहसुन मिर्च का जैविक कीटनाशक बनाकर नियंत्रण कर सकते हैं। इसके अलावा विषाणु जनित रोगों को से बचाने के लिए डॉ दया किसानों को प्रति टंकी (20 लीटर) में 3-4 लीटर मट्ठे के छिड़काव की भी सलाह देते हैं।

फल आने पर फ्रूट फ्लाई ट्रैप का करें प्रयोग

तरबूज, खीरा, लौकी, कद्दू आदि में किसानों को फल छेदक मक्खी फ्रूट फ्लाई (Fruit Fly) नुकसान पहुंचाती है। ये एक छोटी सी मक्खी तरबूज की बतिया (शुरुआती फल) पर ही डंक मारती हैं। जिससे फल या तो सड़ जाता है या फिर वहां पर दाग पड़ जाता है। फल सड़ा तो नुकसान होता ही है फल बचने पर उसका आकार बदल जाता है और मार्केट में उसका भाव नहीं मिलता है।

कृषि वैज्ञानिक इससे बचाव के लिए फ्रूट फ्लाई ट्रैप के इस्तेमाल की सलाह देते हैं। फ्रूट फ्लाई ट्रैप प्लास्टिक का एक कवर होता है, जिसके अंदर मादा मक्खी की गंध वाला एक कैप्सूल होता है, जिसकी गंध से नर मक्खियां उसमें आ जाती हैं और दोबारा निकल नहीं पाती है। कीट पतंगों से अपनी फसलों को बचाने के लिए किसान फेरोमेन ट्रैप, सोलर ट्रैप आदि का भी इस्तेमाल कर सकते हैं जो कीटों को नियंत्रित करते हैं।


तरबूज की तुड़ाई

तरबूज के फलों को बुवाई से 3 या साढ़े तीन महीने के बाद तोडऩा शुरू कर दिया जाता है। फलों को यदि दूर भेजना हो तो पहले ही तोड़ लेना चाहिए। प्रत्येक जाति के हिसाब से फलों के आकार व रंग पर निर्भर करता है कि फल अब पक हो चुका है। आमतौर से फलों को दबाकर भी देख सकते हैं कि अभी पका है या कच्चा। फलों को डंठल से अलग करने के लिए तेज चाकू इस्तेमाल किया जा सकता है। 

प्राप्त उपज

तरबूजे की पैदावार किस्म के अनुसार अलग-अलग होती है। सामान्यत: तरबूजे की औसतन पैदावार 250 से 300 क्विंटल प्रति एकड़ प्राप्त हो जाते हैं।  

तरबूज की खेती पर आने वाला खर्च प्रति एकड़ 

  • 5000 रुपए खेत तैयारी, 
  • 3000 खाद
  • 7000 मलचिंग पेपर 
  • 12000 रुपए बीज
  • 6000 घुलनशील खाद 
  • 4000 रु. कीटनाशक 
  • 6000 तुड़ाई पर 30 मजदूरों की जरूरत
  • 43000 रु. कुल खर्च

तरबूज की खेती से प्राप्त लाभ/आय का गणित

अगर व्यापारी को आप तरबूज देते हो तो वो आप को कम से कम 700 रुपए और अधिक से अधिक 1000 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से खरीदेगा

अगर आप का तरबूज 300 क्विंटल निकलता हे तो एक एकड़ से आप को 3 लाख रुपए प्राप्त होगे, अगर आप का खर्च निकल दो तो 3 लाख से 50 हजार खर्च निकल दे तो 2.5 लाख आप को मुनाफा होगा ,

एक एकड़ में कम समय में कोई सी भी फसल इतना पैसा नही देती , इस कारण तरबूज की खेती में कम समय में अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है।




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